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"अध्यापक से / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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मरने से पहले घर एक बार जाने की आकांक्षा
 
मरने से पहले घर एक बार जाने की आकांक्षा
 
 
साहित्य के अंदर कितना पिटा हुआ वाक्य बन जाती है ।
 
साहित्य के अंदर कितना पिटा हुआ वाक्य बन जाती है ।
 
  
 
अरे भले आदमी, अध्यापक,
 
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लेखक की यह जीवन भर की कमाई थी
 
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करुणा से स्वर कंपाय तुमने बहाय दी ।
 
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('कुछ पते कुछ चिट्ठियां' नामक कविता-संग्रह से )
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00:49, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण

मरने से पहले घर एक बार जाने की आकांक्षा
साहित्य के अंदर कितना पिटा हुआ वाक्य बन जाती है ।

अरे भले आदमी, अध्यापक,
लेखक की यह जीवन भर की कमाई थी
करुणा से स्वर कंपाय तुमने बहाय दी ।