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903 bytes added, 11:14, 6 जून 2009
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
नागयज्ञ
<poem>
जो हमारी
धड़कनों की
खूब मोचन
वेदियाँ हुँकारती हैं।
 
चंद्रमौलेश्वर जी!
मैंने 'नागयज्ञ' कविता को ठीक कर दिया है। आप कविता कोश में नागयज्ञ कविता पर जाकर 'बदलें' पर क्लिक करें और खोलकर देखें कि आपकी समस्या को हल करने के लिए मैंने क्या किया है। वैसे आपको बता दूँ कि जब कुछ स्पेस देकर किसी पंक्ति को शुरू करना हो तो हम लोग दो बिन्दुओं (:) यानी विसर्ग का इस्तेमाल करते हैं। आप भी ऎसा ही करिये।
सादर
अनिल जनविजय
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