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"चलते-चलते / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

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सो गया।
 
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तहखाने से उठकर
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दो पाँव
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घूमते हैं-
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गली
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बस्ती
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बाज़ार
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अटारी
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चौबारा
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दालान
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चबूतरा
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::: चबूतरा
चौपाल
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सड़क
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::: सड़क
कमरे
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::: कमरे
पहाड़
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::: पहाड़
हाट
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जंगल।
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::: जंगल।
भटकते हैं-
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::: भटकते हैं-
हरियाली  
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पानी  
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फूल  
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चहल-पहल  
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विश्रांति  
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जाने क्या-क्या खोजते।
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दो पावों के ऊपर
 
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बाहर नहीं आ सकते।
 
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बस
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दो यायावरी पाँव
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भटकते हैं इसीलिए
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अंधेरे में
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अकेले।
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14:44, 17 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

चलते-चलते

गली
बस्ती
मुहल्ले
सारा शहर
सारा देश
सो गया।

तहखाने से उठकर
दो पाँव
घूमते हैं-
गली
बस्ती
बाज़ार
अटारी
चौबारा
दालान
चबूतरा
चौपाल
सड़क
कमरे
पहाड़
हाट
जंगल।
भटकते हैं-
हरियाली
पानी
फूल
चहल-पहल
विश्रांति
जाने क्या-क्या खोजते।

दो पावों के ऊपर
सारी देह गायब है,
उजाले में
बाहर नहीं आ सकते।

बस
दो यायावरी पाँव
भटकते हैं इसीलिए
अंधेरे में
अकेले।