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"मधुशाला / भाग ६ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
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क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,
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हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
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हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।
  
साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,<br>
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साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,
क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,<br>
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पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,<br>
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जीवन भर का, हाय, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।<br><br>
+
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।
  
साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,<br>
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जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,<br>
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जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
जीवन भर का, हाय, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,<br>
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मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।<br><br>
+
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।
  
जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,<br>
+
नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,<br>
+
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,<br>
+
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।<br><br>
+
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।
  
नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,<br>
+
मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,<br>
+
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरी ओर देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,<br>
+
साकी, मेरे पास आना मैं पागल हो जाऊँगा,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।<br><br>
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प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।
  
मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,<br>
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क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,<br>
+
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,<br>
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पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।<br><br>
+
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।
  
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,<br>
+
देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,<br>
+
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!<br>
+
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।<br><br>
+
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।
  
देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,<br>
+
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,<br>
+
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,<br>
+
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।<br><br>
+
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।
  
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,<br>
+
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,<br>
+
भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,<br>
+
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।<br><br>
+
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।
  
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,<br>
+
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,
भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,<br>
+
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,<br>
+
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।<br><br>
+
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।११०।
  
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,<br>
+
जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,<br>
+
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,<br>
+
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।११०।<br><br>
+
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।
  
जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,<br>
+
कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,<br>
+
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,<br>
+
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।<br><br>
+
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।
  
कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,<br>
+
बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,<br>
+
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,<br>
+
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।<br><br>
+
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।
  
बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,<br>
+
छोड़ा मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,<br>
+
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,<br>
+
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।<br><br>
+
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।
  
छोड़ा मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,<br>
+
यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,<br>
+
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,<br>
+
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।<br><br>
+
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।
  
यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,<br>
+
कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,<br>
+
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को<br>
+
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।<br><br>
+
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६।
  
कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,<br>
+
कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,<br>
+
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,<br>
+
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६।<br><br>
+
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७।
  
कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,<br>
+
दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,<br>
+
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,<br>
+
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७।<br><br>
+
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।११८।
  
दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!<br>
+
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,<br>
+
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,<br>
+
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं अब जमकर बैठ गया हँू, घूम रही है मधुशाला।।११८।<br><br>
+
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।
  
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,<br>
+
किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंिबत करनेवाली है हाला,<br>
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इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -<br>
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अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।<br><br>
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एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।
 
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15:30, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।

साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,
जीवन भर का, हाय, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।

जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।

नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।

मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।

क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।

देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।

एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।

बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,
भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।

एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।११०।

जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।

कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।

बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।

छोड़ा मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।

यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।

कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६।

कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७।

दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।११८।

मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।

किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।