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"पूर्वाभास / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
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नियति-भीषिका की मुसकान | नियति-भीषिका की मुसकान | ||
जान न सकी भोग में भूली- | जान न सकी भोग में भूली- |
18:32, 27 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
हाय ! विभव के उस पद में
नियति-भीषिका की मुसकान
जान न सकी भोग में भूली-
सी तेरी प्यारी सन्तान।
सुन न सका कोई भी उसका
छिपा हुआ वह ध्वंसक राग-
‘‘हरे-भरे, डहडहे विपिन में
शीघ्र लगाऊँगी मैं आग।’’