भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 2" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[रामधारी सिंह "दिनकर"]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:रामधारी सिंह "दिनकर"]]
+
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"}}
 +
{{KKPageNavigation
 +
|पीछे=रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 1
 +
|आगे=रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 3
 +
|सारणी=रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
वसुधा का नेता कौन हुआ?
  
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
+
भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
 
+
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
+
 
+
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
+
  
 +
नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
 
जिसने न कभी आराम किया,
 
जिसने न कभी आराम किया,
  
 
विघ्नों में रहकर नाम किया।
 
विघ्नों में रहकर नाम किया।
 +
जब विघ्न सामने आते हैं,
  
 +
सोते से हमें जगाते हैं,
 +
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
  
 
+
तन को झँझोरते हैं पल-पल।
जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं,
+
 
+
मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झँझोरते हैं पल-पल।
+
 
+
 
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
 
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
  
 
जाते हैं हमें जगाकर ही।
 
जाते हैं हमें जगाकर ही।
 +
वाटिका और वन एक नहीं,
  
 +
आराम और रण एक नहीं।
 +
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,
  
 
+
पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं।
+
 
+
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
+
 
+
 
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
 
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
  
 
बागों में शाल न मिलते हैं।
 
बागों में शाल न मिलते हैं।
 +
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,
  
 +
छाया देता केवल अम्बर,
 +
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,
  
 
+
लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर,
+
 
+
विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
+
 
+
 
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
 
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
  
 
वे ही शूरमा निकलते हैं।
 
वे ही शूरमा निकलते हैं।
 +
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,
  
 +
मेरे किशोर! मेरे ताजा!
 +
जीवन का रस छन जाने दे,
  
 
+
तन को पत्थर बन जाने दे।
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, मेरे किशोर! मेरे ताजा!
+
 
+
जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे।
+
 
+
 
तू स्वयं तेज भयकारी है,
 
तू स्वयं तेज भयकारी है,
  
 
क्या कर सकती चिनगारी है?
 
क्या कर सकती चिनगारी है?
 +
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
  
 +
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
 +
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
  
 
+
पांडव आये कुछ और निखर।
वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
+
 
+
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।
+
 
+
 
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
 
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
  
 
देखें, आगे क्या होता है।
 
देखें, आगे क्या होता है।
 +
</poem>

21:46, 30 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

वसुधा का नेता कौन हुआ?

भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?

नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,

विघ्नों में रहकर नाम किया।
जब विघ्न सामने आते हैं,

सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,

तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,

जाते हैं हमें जगाकर ही।
वाटिका और वन एक नहीं,

आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,

पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं,

बागों में शाल न मिलते हैं।
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,

छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,

लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,

वे ही शूरमा निकलते हैं।
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,

मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे,

तन को पत्थर बन जाने दे।
तू स्वयं तेज भयकारी है,

क्या कर सकती चिनगारी है?
वर्षों तक वन में घूम-घूम,

बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,

पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,

देखें, आगे क्या होता है।