Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= निदा फ़ाज़ली|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGhazal}}<poem>धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो <br>ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
वो सितारा पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है चमकने दो यूँ ही आँखों में <br>दिल होते हैंक्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो
 पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं <br>अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो   फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है <br>
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,150
edits