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"वसन्त आया / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | केशर के केश कली के छुटे, | + | केशर के केश कली के छुटे, |
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− | पृथ्वी का लहराया।< | + | पृथ्वी का लहराया। |
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19:16, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
सखि, वसन्त आया
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका
मधुप-वृन्द बन्दी-
पिक-स्वर नभ सरसाया।
लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया।
अवृत सरसी-उर-सरसिज उठे;
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया।