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मानसून उतरा है
 
मानसून उतरा है
 
 
जहरी खाल की पहाड़ियों पर
 
जहरी खाल की पहाड़ियों पर
 
  
 
बादल भिगो गए रातोंरात
 
बादल भिगो गए रातोंरात
 
 
सलेटी छतों के
 
सलेटी छतों के
 
 
कच्चे-पक्के घरों को
 
कच्चे-पक्के घरों को
 
 
प्रमुदित हैं गिरिजन
 
प्रमुदित हैं गिरिजन
 
  
 
सोंधी भाप छोड़ रहे हैं
 
सोंधी भाप छोड़ रहे हैं
 
 
सीढ़ियों की
 
सीढ़ियों की
 
 
ज्यामितिक आकॄतियों में
 
ज्यामितिक आकॄतियों में
 
 
फैले हुए खेत
 
फैले हुए खेत
 
 
दूर-दूर...
 
दूर-दूर...
 
 
दूर-दूर
 
दूर-दूर
 
 
दीख रहे इधर-उधर
 
दीख रहे इधर-उधर
 
 
डाँड़े के दोनों ओर
 
डाँड़े के दोनों ओर
 
 
दावानल-दग्ध वनांचल
 
दावानल-दग्ध वनांचल
 
 
कहीं-कहीं डाल रहीं व्यवधान
 
कहीं-कहीं डाल रहीं व्यवधान
 
 
चीड़ों कि झुलसी पत्तियाँ
 
चीड़ों कि झुलसी पत्तियाँ
 
 
मौसम का पहला वरदान
 
मौसम का पहला वरदान
 
 
इन तक भी पहुँचा है
 
इन तक भी पहुँचा है
 
  
 
जहरी खाल पर
 
जहरी खाल पर
 
 
उतरा है मानसून
 
उतरा है मानसून
 
 
भिगो गया है
 
भिगो गया है
 
 
रातोंरात सबको
 
रातोंरात सबको
 
 
इनको
 
इनको
 
 
उनको
 
उनको
 
 
हमको
 
हमको
 
 
आपको
 
आपको
 
 
मौसम का पहला वरदान
 
मौसम का पहला वरदान
 
 
पहुँचा है सभी तक...
 
पहुँचा है सभी तक...
  
  
1984 में रचित
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'''1984 में रचित

19:06, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण

मानसून उतरा है
जहरी खाल की पहाड़ियों पर

बादल भिगो गए रातोंरात
सलेटी छतों के
कच्चे-पक्के घरों को
प्रमुदित हैं गिरिजन

सोंधी भाप छोड़ रहे हैं
सीढ़ियों की
ज्यामितिक आकॄतियों में
फैले हुए खेत
दूर-दूर...
दूर-दूर
दीख रहे इधर-उधर
डाँड़े के दोनों ओर
दावानल-दग्ध वनांचल
कहीं-कहीं डाल रहीं व्यवधान
चीड़ों कि झुलसी पत्तियाँ
मौसम का पहला वरदान
इन तक भी पहुँचा है

जहरी खाल पर
उतरा है मानसून
भिगो गया है
रातोंरात सबको
इनको
उनको
हमको
आपको
मौसम का पहला वरदान
पहुँचा है सभी तक...


1984 में रचित