Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 22:54

"तराशा उसने / अभिज्ञात" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिज्ञात }} <poem> दे के मिलने का भरोसा उसने मुझको छो...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अभिज्ञात
 
|रचनाकार=अभिज्ञात
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
दे के मिलने का भरोसा उसने
 
दे के मिलने का भरोसा उसने

22:54, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

दे के मिलने का भरोसा उसने
मुझको छोड़ा न कहीं का उसने

दूरियाँ और बढ़ा दी गोया
फ़ासला रख के ज़रा-सा उसने

यों भी तीखा था हुस्न का तेवर
संगे दिल को भी तराशा उसने

मेरे किरदारे वफ़ा को लेकर
सबको दिखलाया तमाशा उसने

हमने दिल रक्खा था लुटा बैठे
हुस्न पाया है भला-सा उसने

खत तो भेजा है मुहब्बत में मगर
अपना भेजा नहीं पता उसने

मेरे आगे वो बोलता ही नहीं
तुझसे क्या क्या कहा बता उसने