भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दो शेर-एक मक़्ता / फ़ानी बदायूनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
तर्के-तदबीर को भी देख लिया।
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=फ़ानी बदायूनी
 +
|संग्रह=
 +
}}तर्के-तदबीर को भी देख लिया।
  
 
यह भी तदबीर कारगर न हुई॥
 
यह भी तदबीर कारगर न हुई॥

18:37, 13 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

तर्के-तदबीर को भी देख लिया।

यह भी तदबीर कारगर न हुई॥


यूँ मिली हर निगाह से वो निगाह।

एक की एक को ख़बर न हुई॥


आज तस्कीने-दर्देदिल ‘फ़ानी’।

वह भी चाहा किये मगर न हुई॥