"पगडंडी / विजेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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− | मैं | + | मैं जहाँ तक चला हूँ |
वहीं तक | वहीं तक | ||
− | मेरी | + | मेरी पगडण्डी है |
− | उसके आगे फिर | + | उसके आगे फिर — |
पथरीली कँकरीली धरती है | पथरीली कँकरीली धरती है | ||
और घने वन | और घने वन | ||
गूँजते थर्राते ढलान | गूँजते थर्राते ढलान | ||
वहाँ अभी कोई पथ नहीं | वहाँ अभी कोई पथ नहीं | ||
− | न कोई | + | न कोई पगडण्डी |
वहाँ सबसे पहले जो जाएगा | वहाँ सबसे पहले जो जाएगा | ||
− | वही होगा मेरा | + | वही होगा मेरा कवि । |
− | मैं अपनी | + | मैं अपनी पगडण्डी |
अलग भले न बनाऊँ | अलग भले न बनाऊँ | ||
पर जो दूसरों ने | पर जो दूसरों ने | ||
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उन्हें धुँधलाऊँ नहीं | उन्हें धुँधलाऊँ नहीं | ||
उन्हें विकृत न होने दूँ | उन्हें विकृत न होने दूँ | ||
− | पशुओं के पैने खुर | + | पशुओं के पैने खुर — |
− | जिन आभामय | + | जिन आभामय अँकुरों को खूँदकर गए |
− | उन्हें उगा नहीं सकते | + | उन्हें उगा नहीं सकते — |
− | पहली | + | पहली पगडण्डी पर चलकर |
− | आगे अपनी बनाना ही | + | आगे अपनी बनाना ही — |
कविता है। | कविता है। | ||
+ | |||
डरो मत... | डरो मत... | ||
मैं हर बार | मैं हर बार | ||
− | बनी-बनाई | + | बनी-बनाई पगडण्डियों से |
चलकर ही | चलकर ही | ||
− | नयी | + | नयी पगडण्डियॉं बनाता हूँ — |
− | पिता की | + | |
+ | पिता की पगडण्डी पर भले ही मैं न चलूँ | ||
पर अपने लिए | पर अपने लिए | ||
− | बेहतर और ऐश्वर्यवान | + | बेहतर और ऐश्वर्यवान पगडण्डी तो बनाऊँ |
पर उनका क्या | पर उनका क्या | ||
− | जिन्हें | + | जिन्हें — |
− | आगे-आगे बनी | + | आगे-आगे बनी पगडण्डियाँ |
दिखाई नहीं देतीं ! | दिखाई नहीं देतीं ! | ||
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15:11, 28 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
मैं जहाँ तक चला हूँ
वहीं तक
मेरी पगडण्डी है
उसके आगे फिर —
पथरीली कँकरीली धरती है
और घने वन
गूँजते थर्राते ढलान
वहाँ अभी कोई पथ नहीं
न कोई पगडण्डी
वहाँ सबसे पहले जो जाएगा
वही होगा मेरा कवि ।
मैं अपनी पगडण्डी
अलग भले न बनाऊँ
पर जो दूसरों ने
मुझसे पहले बडे आघात सहकर बनाई हैं
उन्हें धुँधलाऊँ नहीं
उन्हें विकृत न होने दूँ
पशुओं के पैने खुर —
जिन आभामय अँकुरों को खूँदकर गए
उन्हें उगा नहीं सकते —
पहली पगडण्डी पर चलकर
आगे अपनी बनाना ही —
कविता है।
डरो मत...
मैं हर बार
बनी-बनाई पगडण्डियों से
चलकर ही
नयी पगडण्डियॉं बनाता हूँ —
पिता की पगडण्डी पर भले ही मैं न चलूँ
पर अपने लिए
बेहतर और ऐश्वर्यवान पगडण्डी तो बनाऊँ
पर उनका क्या
जिन्हें —
आगे-आगे बनी पगडण्डियाँ
दिखाई नहीं देतीं !