अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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दागे़दिल दिलबर नहीं, सिने से फिर लिपटा हूँ क्यों? | दागे़दिल दिलबर नहीं, सिने से फिर लिपटा हूँ क्यों? |
01:14, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
दागे़दिल दिलबर नहीं, सिने से फिर लिपटा हूँ क्यों?
मैं दिलेदुश्मन नहीं, फिर यूँ जला जाता हूँ क्यों?
रात इतना कहके फिर आशिक़ तेरा ग़श कर गया।
"जब वही आते नहीं , मैं होश में आता हूँ क्यों?