भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नदी किनारे सूरज चमका / केशव शरण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव शरण |संग्रह=जिधर खुला व्योम होता है / केशव श...) |
Arti Singh (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
अंकुर में उभरा | अंकुर में उभरा | ||
ओस में टपका | ओस में टपका | ||
− | + | नदी किनारे सूरज चमका | |
</Poem> | </Poem> |
22:18, 22 अगस्त 2022 के समय का अवतरण
लहरों में नाचा
फूलों में महका
पत्तों में सरसराया
रंगों में छलका
घंटियों में गूंजा
चिड़ियों में चहका
हवाओं में झूमा
पगडंडियों में घूमा
अंकुर में उभरा
ओस में टपका
नदी किनारे सूरज चमका