"मेघयात्री / वीरेंद्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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रुखी यात्राओं पर निकल रहे हम स्वयं- | रुखी यात्राओं पर निकल रहे हम स्वयं- | ||
पुरवाई हमें मत ढकेलो, | पुरवाई हमें मत ढकेलो, | ||
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हट कर हरियाली से दूर चले जाएंगे- | हट कर हरियाली से दूर चले जाएंगे- | ||
दूर किसी अनजाने देश में, | दूर किसी अनजाने देश में, | ||
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होंगे हम मटमैले वेश में, | होंगे हम मटमैले वेश में, | ||
मन से तो पूछो, आवेश में न आओ तुम- | मन से तो पूछो, आवेश में न आओ तुम- | ||
दे दो सीमंत गंध | दे दो सीमंत गंध | ||
जल-प्रवाह ले लो। | जल-प्रवाह ले लो। | ||
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व्यक्ति और मौसम की बात क्या, | व्यक्ति और मौसम की बात क्या, | ||
पानी में चली गई वय की यह गेंद तो- | पानी में चली गई वय की यह गेंद तो- | ||
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होना जो शेष अभी | होना जो शेष अभी | ||
वह गुनाह ले लो। | वह गुनाह ले लो। | ||
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10:53, 31 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
रुखी यात्राओं पर निकल रहे हम स्वयं-
पुरवाई हमें मत ढकेलो,
हम प्यासे बादल हैं, इसी व्योम-मंडप के
दे दो ठंडी झकोर
और दाह ले लो।
क्या जाने कब फिर यह बरसाती सांझ मिले,
गठरी में बांध दो फुहारें-
पता नहीं कण्ठ कहां रुंध जाए भीड में,
जेबों में डाल दो मल्हारें,
स्वयं छोड देंगे हम, गुंजित नभ मंच ये-
दे दो एकांत जरा
वाह-वाह ले लो।
हट कर हरियाली से दूर चले जाएंगे-
दूर किसी अनजाने देश में,
जहाँ छूट जाएंगे नीले आकाश कई-
होंगे हम मटमैले वेश में,
मन से तो पूछो, आवेश में न आओ तुम-
दे दो सीमंत गंध
जल-प्रवाह ले लो।
घूम रहे तेज़ समय के पहिए देखो तो-
व्यक्ति और मौसम की बात क्या,
पानी में चली गई वय की यह गेंद तो-
वह भी फिर आएगी हाथ क्या
करो नहीं झूठा प्रतिरोध मत्स्य गंधा! तुम,
होना जो शेष अभी
वह गुनाह ले लो।