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"मौन है आकाश / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर

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तुम
 
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जो इन मौन सन्नाटों में कहदे
 
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आकाश कि नीलिमा में घुले हुए
 
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कौन?
 
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चमकीली सी इक आग
 
चमकीली सी इक आग
 
 
लपट बन कौंधती है, नारंगी गुलमोहरों के तले
 
लपट बन कौंधती है, नारंगी गुलमोहरों के तले
 
 
हवाएं बादलों से काढ़ती हैं एक बूटा
 
हवाएं बादलों से काढ़ती हैं एक बूटा
 
 
तुम्हारी अनन्त फैली अदृश्य बाहों पर
 
तुम्हारी अनन्त फैली अदृश्य बाहों पर
 
  
 
वहीँ पर कहीं  
 
वहीँ पर कहीं  
 
 
गहराती है शाम सुनहले रंगों में
 
गहराती है शाम सुनहले रंगों में
 
 
शायद यहीं कहीं किन्हीं गुफाओं में  
 
शायद यहीं कहीं किन्हीं गुफाओं में  
 
 
छिपी बैठी गूंजती होंगी
 
छिपी बैठी गूंजती होंगी
 
  
 
ऋचाएं वेदों कि
 
ऋचाएं वेदों कि
 
 
काश ये आँखें, यह मैं, ये हम
 
काश ये आँखें, यह मैं, ये हम
 
  
 
सिर्फ दृश्यों में उलझ कर संतुष्टि न पाते
 
सिर्फ दृश्यों में उलझ कर संतुष्टि न पाते
 
 
कुछ और भी ढूंढ़ पाते
 
कुछ और भी ढूंढ़ पाते
 
 
जो अदृश्य है, अगोचर
 
जो अदृश्य है, अगोचर
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19:45, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुम
जो इन मौन सन्नाटों में कहदे
आकाश कि नीलिमा में घुले हुए
कौन?

चमकीली सी इक आग
लपट बन कौंधती है, नारंगी गुलमोहरों के तले
हवाएं बादलों से काढ़ती हैं एक बूटा
तुम्हारी अनन्त फैली अदृश्य बाहों पर

वहीँ पर कहीं
गहराती है शाम सुनहले रंगों में
शायद यहीं कहीं किन्हीं गुफाओं में
छिपी बैठी गूंजती होंगी

ऋचाएं वेदों कि
काश ये आँखें, यह मैं, ये हम

सिर्फ दृश्यों में उलझ कर संतुष्टि न पाते
कुछ और भी ढूंढ़ पाते
जो अदृश्य है, अगोचर