भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़िन्दगी / ओमप्रकाश सारस्वत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> ज़िन्दगी घर-मन्दिरों से ऊब कर हट कर,उजड़कर रेस्टूरेंटों में य...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
 +
|संग्रह=एक टुकड़ा धूप / ओमप्रकाश सारस्वत
 +
}}
 +
<Poem>
 
ज़िन्दगी  
 
ज़िन्दगी  
 
घर-मन्दिरों से ऊब कर
 
घर-मन्दिरों से ऊब कर

07:45, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

ज़िन्दगी
घर-मन्दिरों से ऊब कर
हट कर,उजड़कर
 रेस्टूरेंटों में
या कॉफी हाऊसों के
उन कटे से कैबिनो में
घुटन में
सटकर,सिमिट कर
जा बसी है

जो वहाँ
कॉफी की कड़वाहट मिटाने को
उसी के संग
चुपके पी रही है
रूप के,रस के
छलकते सैंकड़ों प्याले
कभी नारी की कनखियों से
कभी नर की नज़र से