भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"है यह आजु बसन्त समौ / बिहारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[बिहारी]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:बिहारी]]
+
|रचनाकार=बिहारी  
 
+
|संग्रह=
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
+
}}{{KKAnthologyBasant}}
+
{{KKCatKavita}}
 
है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
 
है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
  

19:12, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण

है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ

अंध कै गंध बढ़ाय लै जात है, मंजुल मारुत कुंज गली कौ

कैसेहुँ भोर मुठी मैं पर्यौ, समुझैं रहियौ न छुट्यौ नहिं नीकौ

देखति बेलि उतैं बिगसी, इत हौ बिगस्यौ बन बौलसरी कौं।।