Last modified on 25 अक्टूबर 2011, at 12:11

"आग / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=आखर अनन्त / विश्...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी
 
|रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी
|संग्रह=आखर अनन्त / विश्वनाथप्रसाद तिवारी  
+
|संग्रह=आखर अनंत / विश्वनाथप्रसाद तिवारी  
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
कहीं बाहर नहीं होती वह
 
कहीं बाहर नहीं होती वह

12:11, 25 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

कहीं बाहर नहीं होती वह
हर चीज़ में होती है आग

आत्मा की तरह अदृश्य और जाग्रत
बिरही की तरह बेचैन और आतुर

किसी भी चीज़ को उठा लो कहीं से
ले जाओ उसे आग के पास
स्पर्श होते ही
वह बन जाएगी आग।