भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"और बात / ओमप्रकाश सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत | संग्रह=शब्दों के संपुट में / ...) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
| संग्रह=शब्दों के संपुट में / ओमप्रकाश सारस्वत | | संग्रह=शब्दों के संपुट में / ओमप्रकाश सारस्वत | ||
}} | }} | ||
− | <poem>जहाँ आदमी | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | जहाँ आदमी | ||
आदमी के खिलाफ | आदमी के खिलाफ | ||
इस्तेमाल होने लग जाए | इस्तेमाल होने लग जाए |
17:18, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
जहाँ आदमी
आदमी के खिलाफ
इस्तेमाल होने लग जाए
जहाँ मानव
पशुता ढोने लग जाए
वहाँ आदमी को आदमी
और् पशु को पशु कहना भी
बेमानी है
यह शब्दों को
शब्दों के मत्थे भर मारना है
अर्थहीन आत्मा की देह पर
आज जबकि शब्द
ब्रह्म होने को तैयार नहीं
तब मैं
अर्थ को कैसे रोक सकता हूँ
जबकि मैं
आपको भी तो टोक नहीं सकता कि
श्वानों के संग
बिस्तर पर खेलना और बात है
और मनुष्यों के साथ
धरती पर सोना और बात