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"लो वही हुआ / दिनेश सिंह" के अवतरणों में अंतर
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− | ना रही नदी, ना रही | + | ना रही नदी, ना रही लहर । |
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+ | हर ओर उमस के चर्चे हैं | ||
+ | बिजली पँखों के खर्चे हैं | ||
+ | बूढे महुए के हाथों से, | ||
+ | उड़ रहे हवा में पर्चे हैं | ||
+ | "चलना साथी लू से बचकर" | ||
+ | ना रही नदी, ना रही लहर । | ||
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+ | संकल्प हिमालय सा गलता | ||
+ | सारा दिन भट्ठी सा जलता | ||
+ | मन भरे हुए, सब डरे हुए | ||
+ | किस की हिम्मत बाहर हिलता | ||
+ | है खड़ा सूर्य सर के ऊपर | ||
+ | ना रही नदी, ना रही लहर । | ||
+ | बोझिल रातों के मध्य पहर | ||
+ | छपरी से चन्द्रकिरण छनकर | ||
+ | लिख रही नया नारा कोई | ||
+ | इन तपी हुई दीवारों पर | ||
+ | क्या बाँचूँ सब थोथे आखर | ||
+ | ना रही नदी, ना रही लहर । | ||
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22:45, 22 मई 2020 के समय का अवतरण
लो वही हुआ जिसका था डर
ना रही नदी, ना रही लहर ।
सूरज की किरन दहाड़ गई
गरमी हर देह उघाड़ गई
उठ गया बवण्डर, धूल हवा में
अपना झंडा गाड़ गई
गौरइया हाँफ रही डरकर
ना रही नदी, ना रही लहर ।
हर ओर उमस के चर्चे हैं
बिजली पँखों के खर्चे हैं
बूढे महुए के हाथों से,
उड़ रहे हवा में पर्चे हैं
"चलना साथी लू से बचकर"
ना रही नदी, ना रही लहर ।
संकल्प हिमालय सा गलता
सारा दिन भट्ठी सा जलता
मन भरे हुए, सब डरे हुए
किस की हिम्मत बाहर हिलता
है खड़ा सूर्य सर के ऊपर
ना रही नदी, ना रही लहर ।
बोझिल रातों के मध्य पहर
छपरी से चन्द्रकिरण छनकर
लिख रही नया नारा कोई
इन तपी हुई दीवारों पर
क्या बाँचूँ सब थोथे आखर
ना रही नदी, ना रही लहर ।