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"बनमानुष कविता पढ़ रहा है / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>घूमने वाली आरामदेह कुर्सी में धंसकर
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घूमने वाली आरामदेह कुर्सी में धंसकर
 
एक वनमानुष  
 
एक वनमानुष  
 
अपने धुएं रंगे चश्मे को
 
अपने धुएं रंगे चश्मे को

12:20, 7 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

घूमने वाली आरामदेह कुर्सी में धंसकर
एक वनमानुष
अपने धुएं रंगे चश्मे को
बार-बार टिकाता है
चपटी नाक पर
औ' इससे पहले कि फिसल जाए
चश्मा नाक से
उसे अंगुली से दाबकर
क़लम उठाता है
और
कविता की पंक्तियों के गिर्द
एक दायरा बना देता है

जानता है वह
कि क़लम के जादू को
क़तल करने से पहले
कैद करना पड़ता है

वातानुकूलित कमरे में बैठकर
क़लमकसाई बनमानुष
कविता की किरन को
एक पोखर में से गुज़ारता है
और
अंधेरे की सात शमशीरों में
तबदील कर लेता है

एक बड़ी मेज़ के गिर्द
बैठे गुरिल्ले
घूरते हैं अपलक
बीचों-बीच रखी
पंख फड़फड़ाती
किताब एक
लम्बी बातचीत के बाद
बे लोग
लेते हैं अल्पाहार
बर्तन
भिजवाते हैं बाहर

तब बोलता है
बनमानुष---
इसमें लिखे हैं झूठ.....
किसी कथन का
कोई आधार नहीं
फिर भी
किताब से कारगर
कोई हथियार नहीं

गुरिल्ले के प्रत्येक शब्द पर
सभी सयाने
तालबद्ध सिर हिलाते हैं
और
ख़तरे के ख़िलाफ
एक हो जाते हैं
देखो न
शब्द के जिस्म पर निब तोड़कर
बह पैंसिल उठा रहा है
उसे मारक घड़ रहा है
बनमानुष कविता पढ़ रहा है।