भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीवनी / रमेशचन्द्र शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेशचन्द्र शाह }} <poem> सब अनर्थ है कहा अर्थ ने मुझ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रमेशचन्द्र शाह | |रचनाकार=रमेशचन्द्र शाह | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
सब अनर्थ है | सब अनर्थ है |
02:12, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सब अनर्थ है
कहा अर्थ ने
मुझे साध कर
तू अनाथ है
कहा नाथ ने
मुझे नाथ कर
इसी तरह
शह देते आए
मुझे मातबर
पहुचना घर
मगर उन्हें भी
मुझे लाद कर
पनपे खर -
पतवार सभी तो
मुझे खाद कर