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"ध्वनि / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | + | फेरूँगा निद्रित कलियों पर | |
− | + | जगा एक प्रत्यूष मनोहर | |
− | + | पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, | |
− | + | अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, | |
− | + | द्वार दिखा दूँगा फिर उनको | |
− | + | है मेरे वे जहाँ अनन्त- | |
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16:38, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।