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| − | + | जगा एक प्रत्यूष मनोहर | |
| − | + | पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, | |
| − | + | अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, | |
| − | + | द्वार दिखा दूँगा फिर उनको | |
| − | + | है मेरे वे जहाँ अनन्त- | |
| − | + | अभी न होगा मेरा अन्त। | |
| − | + | मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, | |
| − | + | इसमें कहाँ मृत्यु? | |
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| + | अभी पड़ा है आगे सारा यौवन | ||
| + | स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन, | ||
| − | + | मेरे ही अविकसित राग से | |
| − | + | विकसित होगा बन्धु, दिगन्त; | |
| − | + | अभी न होगा मेरा अन्त। | |
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16:38, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।