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यह साया | यह साया |
17:37, 7 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
यह धूप
जिसने मुझे उल्लास दिया
यह साया
जिसने मुझे सीमित किया
विजय के क्षण
रंगों की बरसात में भिगो गये
पराजयों के सिलसिले
आँखों की नमी को
हीरे की कनी दे गये
अरी ओ धूप !
ओ रे साये !
विजय श्री !
पराजय तुम !
तुम सभी मेरी बाहों में आओ
मुझे पूर्ण का आभास दो ।