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"गरमी में प्रात:काल / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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गरमी में प्रात:काल पवन  
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बेला से खेला करता जब
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तब याद तुम्‍हारी आती है।
 
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तब याद तुम्‍हारी आती है।  
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जब मन में लाखों बार गया-
 
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आया सुख सपनों का मेला,
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जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
 
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
 
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युग का पल-पल जल-जल झेला,
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मिलने के उन दो यामों ने
 
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दिखलाई अपनी परछाईं,
 
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वह दिन ही था बस दिन मुझको
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वह बेला थी मुझको बेला;
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उड़ती छाया सी वे घड़ि‍याँ
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बीतीं कब की लेकिन तब से,
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गरमी में प्रात:काल पवन
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बेला से खेला करता जब
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तब याद तुम्‍हारी आती है।
  
वह दिन ही था बस दिन मुझको
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तुमने जिन सुमनों से उस दिन
 
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केशों का रूप सजाया था,
वह बेला थी मुझको बेला;
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उनका सौरभ तुमसे पहले
 
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मुझसे मिलने को आया था,
उड़ती छाया सी वे घड़ि‍याँ
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बह गंध गई गठबंध करा
 
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तुमसे, उन चंचल घ‍ड़ि‍यों से,
बीतीं कब की लेकिन तब से,
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उस सुख से जो उस दिन मेरे
 
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गरमी में प्रात:काल पवन
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बेला से खेला करता जब
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तब याद तुम्‍हारी आती है।
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तुमने जिन सुमनों से उस दिन  
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केशों का रूप सजाया था,  
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प्राणों के बीच समाया था;
 
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वह गंध उठा जब करती है
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दिल बैठ न जाने जाता क्‍यों;
 
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गरमी में प्रात:काल पवन,
दिल बैठ न जाने जाता क्‍यों;  
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प्रिय, ठंडी आहें भरता जब
 
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गरमी में प्रात:काल पवन,  
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तब याद तुम्‍हारी आती है।
 
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गरमी में प्रात:काल पवन
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बेला से खेला करता जब
 
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तब याद तुम्‍हारी आती है।
 
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चितवन जिस ओर गई उसने
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मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
 
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मादक मुसकानों ने मेरी
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गोदी पंखुरियों से भर दी
 
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हाथों में हाथ लिए, आए
 
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अंजली में पुष्‍पों से गुच्‍छे,
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जब तुमने मेरी अधरों पर
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अधरों की कोमलता धर दी,
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कुसुमायुध का शर ही मानो
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मेरे अंतर में पैठ गया!
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गरमी में प्रात: काल पवन
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तब याद तुम्‍हारी आती है।
  
अंजली में पुष्‍पों से गुच्‍छे,
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बेला से खेला करता जब
जब तुमने मेरी अधरों पर
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अधरों की कोमलता धर दी,
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तब याद तुम्‍हारी आती है।
 
तब याद तुम्‍हारी आती है।
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21:18, 26 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

गरमी में प्रात: काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

जब मन में लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
युग का पल-पल जल-जल झेला,
मिलने के उन दो यामों ने
दिखलाई अपनी परछाईं,
वह दिन ही था बस दिन मुझको
वह बेला थी मुझको बेला;
उड़ती छाया सी वे घड़ि‍याँ
बीतीं कब की लेकिन तब से,
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

तुमने जिन सुमनों से उस दिन
केशों का रूप सजाया था,
उनका सौरभ तुमसे पहले
मुझसे मिलने को आया था,
बह गंध गई गठबंध करा
तुमसे, उन चंचल घ‍ड़ि‍यों से,
उस सुख से जो उस दिन मेरे
प्राणों के बीच समाया था;
वह गंध उठा जब करती है
दिल बैठ न जाने जाता क्‍यों;
गरमी में प्रात:काल पवन,
प्रिय, ठंडी आहें भरता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

चितवन जिस ओर गई उसने
मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
मादक मुसकानों ने मेरी
गोदी पंखुरियों से भर दी
हाथों में हाथ लिए, आए
अंजली में पुष्‍पों से गुच्‍छे,
जब तुमने मेरी अधरों पर
अधरों की कोमलता धर दी,
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रात: काल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

गरमी में प्रात: काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।