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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा
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<poem>प्रिय ! सान्ध्य गगन<br>मेरा जीवन!<br>यह क्षितिज बना धुँधला विराग,<br>नव अरुण अरुण मेरा सुहाग,<br>छाया सी काया वीतराग,<br>सुधिभीने स्वप्न रँगीले घन!<br><br>
साधों का आज सुनहलापन,<br>घिरता विषाद का तिमिर सघन,<br>सन्ध्या का नभ से मूक मिलन,<br>यह अश्रुमती हँसती चितवन!<br><br>
लाता भर श्वासों का समीर,<br>जग से स्मृतियों का गन्ध धीर,<br>सुरभित हैं जीवन-मृत्यु-तीर,<br>रोमों में पुलकित कैरव-वन!<br><br>
अब आदि अन्त दोनों मिलते,<br>रजनी-दिन-परिणय से खिलते,<br>आँसू मिस हिम के कण ढुलते,<br>ध्रुव आज बना स्मृति का चल क्षण!<br><br>
इच्छाओं के सोने से शर,<br>किरणों से द्रुत झीने सुन्दर,<br>सूने असीम नभ में चुभकर-<br>बन बन आते नक्षत्र-सुमन!<br><br>
घर आज चले सुख-दु:ख विहग!<br>तम पोंछ रहा मेरा अग जग;<br>छिप आज चला वह चित्रित मग,<br>उतरो अब पलकों में पाहुन!<br><br/poem>
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