भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मातृ वंदना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>नर जीवन के स्वार्थ सकल बलि हों तेरे चरणों पर, माँ मेरे श्रम सिंच…)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>नर जीवन के स्वार्थ सकल
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKPrasiddhRachna}}
 +
<poem>
 +
नर जीवन के स्वार्थ सकल
 
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
 
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
 
मेरे श्रम सिंचित सब फल।
 
मेरे श्रम सिंचित सब फल।
  
जीवन के रथ पर चढ कर
+
जीवन के रथ पर चढ़कर
 
सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर
 
सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर
 
महाकाल के खरतर शर सह
 
महाकाल के खरतर शर सह
सकूँ, मुझे तू कर दृढतर;
+
सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर;
 
जागे मेरे उर में तेरी
 
जागे मेरे उर में तेरी
 
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
 
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
पंक्ति 12: पंक्ति 19:
 
जननि, जन्म श्रम संचित पल।
 
जननि, जन्म श्रम संचित पल।
  
बाधायें आएँ तन पर
+
बाधाएँ आएँ तन पर
 
देखूँ तुझे नयन मन भर
 
देखूँ तुझे नयन मन भर
 
मुझे देख तू सजल दृगों से
 
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर
+
अपलक, उर के शतदल पर;
;
+
 
क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
 
क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
 
मुक्त करूंगा तुझे अटल
 
मुक्त करूंगा तुझे अटल
 
तेरे चरणों पर दे कर बलि
 
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल</poem>
+
सकल श्रेय श्रम संचित फल
 +
</poem>

10:11, 7 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल।

जीवन के रथ पर चढ़कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर
महाकाल के खरतर शर सह
सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर;
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
दृग जल से पा बल बलि कर दूँ
जननि, जन्म श्रम संचित पल।

बाधाएँ आएँ तन पर
देखूँ तुझे नयन मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर;
क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
मुक्त करूंगा तुझे अटल
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल