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प्रयाण-गीत / सोहनलाल द्विवेदी

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[[बढे़ चलो, बढे़ चलो / सोहनलाल द्विवेदी]] को अनुप्रेषित
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी}} {{KKCatKavita}}<poem>न हाथ एक शस्त्र हो न साथ एक अस्त्र होन अन्न नीर वस्त्र हो,हटो नहीं, डटो वहीं, बढे #REDIRECT[[बढे़ चलो बढे चलो ।  रहे समक्ष हिम शिखर, तुम्हारा पर्ण उठे निखरभले ही जाय तन बिखर,रुको नहीं, झुको नहीं, बढे बढे़ चलो बढे चलो ।  घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकुट होवही अमृत का घूंट होजिये चलो मरे चलो, बढे चलो बढे चलो ।  गगन उगलता आग हो, छिड़ा मरण का राग हो,लहू का अपने फ़ाग होअड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।  चलो नई मिसाल हो, जलो नई मशाल हो,पढो नया कमाल होरुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो ।  अशेष रक्त तोल दो, स्वतंत्रता का मोल दो,कडी युगों की खोल दो,डरो नहीं, मरो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।।</poem>सोहनलाल द्विवेदी]]
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