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+ | फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े, | ||
+ | जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी। | ||
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+ | न जब तलक निशान शत्रु का हटे, | ||
+ | हज़ार शीश एक ठौर पर कटे, | ||
+ | ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे, | ||
+ | तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी। | ||
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01:36, 21 मई 2011 के समय का अवतरण
कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला,
स्वतंत्र हो कदम न चार था चला,
कि एक आ खड़ी हुई नई बला,
परंतु वीर हार मानते कभी?
निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।
जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।