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"देश के सैनिकों से / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
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कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
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फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
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जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।
  
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जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
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न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
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हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
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ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
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तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।
 
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01:36, 21 मई 2011 के समय का अवतरण

कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला,
स्वतंत्र हो कदम न चार था चला,
कि एक आ खड़ी हुई नई बला,
परंतु वीर हार मानते कभी?

निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।

जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।