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शशि गगन पार हँसे न हँसे--
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नभ में रवहीन दीन--
 
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'''इलाहाबाद, अक्टूबर, 1948'''
 
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10:51, 29 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण

इतराया यह और ज्वार का
क्वाँर की बयार चली,
शशि गगन पार हँसे न हँसे--
शेफाली आँसू ढार चली !
नभ में रवहीन दीन--
बगुलों की डार चली;
मन की सब अनकही रही--
पर मैं बात हार चली !

इलाहाबाद, अक्टूबर, 1948