भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अज्ञेय | |रचनाकार=अज्ञेय | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatNavgeet}} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | प्राण तुम्हारी | + | प्राण तुम्हारी पदरज फूली |
− | मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यह | + | मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यह धूली! |
− | धूली! | + | |
आई थी तो जाना भी था - | आई थी तो जाना भी था - | ||
फिर भी आओगी, दुःख किसका? | फिर भी आओगी, दुःख किसका? | ||
− | एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की रेखा छू | + | एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की रेखा छू ली! |
− | ली! | + | |
वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी, | वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी, | ||
गीत शब्द का कब अभिलाषी? | गीत शब्द का कब अभिलाषी? | ||
− | अंतर में पराग सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली! | + | अंतर में पराग-सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली! |
− | प्राण तुम्हारी | + | प्राण तुम्हारी पदरज फूली! |
</poem> | </poem> |
10:42, 7 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
प्राण तुम्हारी पदरज फूली
मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यह धूली!
आई थी तो जाना भी था -
फिर भी आओगी, दुःख किसका?
एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की रेखा छू ली!
वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी,
गीत शब्द का कब अभिलाषी?
अंतर में पराग-सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज फूली!