"चंद शेर / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर
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+ | हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं | ||
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− | + | नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है | |
+ | परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है | ||
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− | + | मोहाजिरो यही तारीख है मकानों की | |
+ | बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा | ||
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− | + | तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी | |
+ | इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था | ||
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− | + | किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी | |
+ | हमें मालूम है तुमको यह बीमारी नहीं होगी | ||
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− | + | तुझे अकेले पढूँ कोई हम-सबक न रहे | |
+ | मैं चाहता हूँ कि तुझ पर किसी का हक न रहे | ||
− | + | 7. | |
− | + | तलवार तो क्या मेरी नज़र तक नहीं उठी | |
+ | उस शख़्स के बच्चों की तरफ देख लिया था | ||
− | + | 8. | |
− | + | फ़रिश्ते आके उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं | |
+ | वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाडू लगाते हैं | ||
− | + | 9. | |
− | + | किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई | |
+ | मैं घर में सबसे छोटा था मेरी हिस्से में माँ आई | ||
− | + | 10. | |
− | + | सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं | |
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− | सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं | + | |
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं | हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं | ||
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17:32, 21 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
1.
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
2.
नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है
3.
मोहाजिरो यही तारीख है मकानों की
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा
4.
तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था
5.
किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी
हमें मालूम है तुमको यह बीमारी नहीं होगी
6.
तुझे अकेले पढूँ कोई हम-सबक न रहे
मैं चाहता हूँ कि तुझ पर किसी का हक न रहे
7.
तलवार तो क्या मेरी नज़र तक नहीं उठी
उस शख़्स के बच्चों की तरफ देख लिया था
8.
फ़रिश्ते आके उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाडू लगाते हैं
9.
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरी हिस्से में माँ आई
10.
सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं