Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा }} {{KKCatKavita}} <poem> उर तिमिरमय घर विमिरमय …) |
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− | उर तिमिरमय घर | + | उर तिमिरमय घर तिमिरमय |
चल सजनि दीपक बार ले! | चल सजनि दीपक बार ले! | ||
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काँच से टूटे पड़े यह | काँच से टूटे पड़े यह | ||
स्वप्न, भूलें, मान तेरे; | स्वप्न, भूलें, मान तेरे; | ||
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फूलप्रिय पथ शूलमय | फूलप्रिय पथ शूलमय | ||
पलकें बिछा सुकुमार ले! | पलकें बिछा सुकुमार ले! | ||
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तृषित जीवन में घिर घन- | तृषित जीवन में घिर घन- | ||
बन; उड़े जो श्वास उर से; | बन; उड़े जो श्वास उर से; | ||
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पलक-सीपी में हुए मुक्ता | पलक-सीपी में हुए मुक्ता | ||
सुकोमल और बरसे; | सुकोमल और बरसे; |
17:32, 4 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
उर तिमिरमय घर तिमिरमय
चल सजनि दीपक बार ले!
राह में रो रो गये हैं
रात और विहान तेरे
काँच से टूटे पड़े यह
स्वप्न, भूलें, मान तेरे;
फूलप्रिय पथ शूलमय
पलकें बिछा सुकुमार ले!
तृषित जीवन में घिर घन-
बन; उड़े जो श्वास उर से;
पलक-सीपी में हुए मुक्ता
सुकोमल और बरसे;
मिट रहे नित धूलि में
तू गूँथ इनका हार ले !
मिलन वेला में अलस तू
सो गयी कुछ जाग कर जब,
फिर गया वह, स्वप्न में
मुस्कान अपनी आँक कर तब।
आ रही प्रतिध्वनि वही फिर
नींद का उपहार ले !
चल सजनि दीपक बार ले !