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"साठ पार के माँ-बाबूजी / अभिज्ञात" के अवतरणों में अंतर
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01:38, 20 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
जैसे कि एक की साँस का होना
दूसरे के लिए बेहद ज़रूरी है
एक जो पहले सोता है
लेता है खर्राटे ज़ोर-ज़ोर से
और दूसरे जागता रहता है उसके सहारे, उसकी डोर थामे
उसके लिए यह साँसों की आवाज़ एक आश्वासन है
जीने की लय
जीने का जरिया और मतलब
जीने की वज़ह
एक का खर्राटा बचाता है दूसरे को अकेला होने से
कभी-कभी लगता है खर्राटे लेने वाला करता रहता है दूसरे की साँस की रखवाली।