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इस शहर की सड़कें | इस शहर की सड़कें |
10:24, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
इस नगर की
गदराई सड़कों पर
पकते आमों की महक में
फिर बोली है कोयल
और दहक उठा है
अकेला एक तारा
सलेटी आकाश के तम्बू पर
काले पेड़ों की कढ़ाई
और चंदा की फांक संग
ठहरे हुए ताल
एक-दूसरे को क़ाट निकलते
सड़कों के वृत्त
और अनगिनत वनस्पतियों की एकाकार महक
इन सड़कों के वृत्तों को घेरता
आकाश का एक वृत्त
ऊपर नहीं
अपने ही गिर्द लगता है जो
तेरी कोमल आवाज़ का
धीमा जादू
अभी अभी मेरे कानों में घुला है
अब याद आया
कि क्यों गदराई है
इस शहर की सड़कें
कि क्यों बोली थी कोयल
कि दहका था क्यों
पंचमी के चांद संग
अकेला एक तारा
अम्बर से आलिंगन-बद्ध
मैं याद नहीं कर पाया
अपना कोई एक नगर
अपनी कोई एक डगर
बस तेरी आवाज़ का कोमल जादू
गुज़र गया है
मुझे छूकर ।