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"शिशु और शैशव / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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भविष्यत का मधुर उपमान है कोई,
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जिसे तुम देखकर सब आपदाएँ शान्त हो सहते?
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अगर हाँ, तो तुम्हें मैं भाग्यशाली मानता हूँ,
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तुम्हारी आपदाओं को यदपि मैं जानता हूँ।
  
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बच्चों को दो प्रेम और सम्मान भी।
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आवश्यक जितना है उससे अधिक बनो मत बाप।
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जब-तब कुछ एकान्त चाहिए बच्चों को भी,
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पहरा देते समय रखो यह ध्यान भी।
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सूक्ष्म ही होते विरह, भय, शोक भी।
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केवल खिला-पिलाकर ही पालो मत इनको,
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इन्हें वक्ष से अधिक नयन का क्षीर चाहिए।
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बच्चों को नाहक संयम सिखलाते हो।
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वे तो बनना वही चाहते हैं जो तुम हो।
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तो फिर जिह्वा को देकर विश्राम जरा-सा
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अपना ही दृष्टान्त न क्यों दिखलाते हो?
 
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15:05, 21 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

(१)
न तो सोचता है भविष्य पर, न तो भूत का धरता ध्यान,
केवल वर्तमान का प्रेमी, इसीलिए, शैशव छविमान।

(२)
क्या तुम्हें संतान है कोई,
जिसे तुम देख मन ही मन भरे आनन्द से रहते?
भविष्यत का मधुर उपमान है कोई,
जिसे तुम देखकर सब आपदाएँ शान्त हो सहते?
अगर हाँ, तो तुम्हें मैं भाग्यशाली मानता हूँ,
तुम्हारी आपदाओं को यदपि मैं जानता हूँ।

(३)
बच्चों को दो प्रेम और सम्मान भी।
आवश्यक जितना है उससे अधिक बनो मत बाप।
जब-तब कुछ एकान्त चाहिए बच्चों को भी,
पहरा देते समय रखो यह ध्यान भी।

(४)
सूक्ष्म होता तृप्ति-सुख माता-पिता का,
सूक्ष्म ही होते विरह, भय, शोक भी।

(५)
केवल खिला-पिलाकर ही पालो मत इनको,
इन्हें वक्ष से अधिक नयन का क्षीर चाहिए।

(६)
बच्चों को नाहक संयम सिखलाते हो।
वे तो बनना वही चाहते हैं जो तुम हो।
तो फिर जिह्वा को देकर विश्राम जरा-सा
अपना ही दृष्टान्त न क्यों दिखलाते हो?