"सवाल / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
− | |||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatNazm}} | {{KKCatNazm}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | '''सवाल''' | + | '''सवाल''' |
(‘फ़िराक़' की तस्वीर देखकर) | (‘फ़िराक़' की तस्वीर देखकर) | ||
− | एक संग- तराश<ref> | + | एक संग- तराश<ref>मूर्तिकार</ref> जिसने बरसों |
− | हीरों की तरह सनम तराशे | + | हीरों की तरह सनम<ref>प्रतिमाएँ</ref> तराशे |
− | आज अपने सनमकदे में तन्हा<ref>अकेला</ref> | + | आज अपने सनमकदे<ref>मंदिर</ref> में तन्हा<ref>अकेला</ref> |
मजबूर, निढाल,ज़ख़्म-ख़ुर्दा<ref>घायल</ref> | मजबूर, निढाल,ज़ख़्म-ख़ुर्दा<ref>घायल</ref> | ||
दिन रात पड़ा कराहता है | दिन रात पड़ा कराहता है | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 33: | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
09:23, 24 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
सवाल
(‘फ़िराक़' की तस्वीर देखकर)
एक संग- तराश<ref>मूर्तिकार</ref> जिसने बरसों
हीरों की तरह सनम<ref>प्रतिमाएँ</ref> तराशे
आज अपने सनमकदे<ref>मंदिर</ref> में तन्हा<ref>अकेला</ref>
मजबूर, निढाल,ज़ख़्म-ख़ुर्दा<ref>घायल</ref>
दिन रात पड़ा कराहता है
चेहरे पे उजाड़ ज़िन्दगी के
लम्हात<ref>क्षणों</ref> की अनगिनत ख़राशें<ref>रगड़ें</ref>
आँखों के शिकस्ता<ref>टूटे-फूटे</ref> मरक़दों<ref>समाधियों</ref> में
रूठी हुई हसरतों की लाशें
साँसों की थकन बदन की ठंडक
अहसास से कब तलक लहू ले
हाथों में कहाँ सकत <ref>ताक़त</ref> कि बढ़कर
ख़ुद-साख़्ता<ref>स्वयं द्वारा निर्मित</ref> पैकरों <ref>आकृतियों</ref> को छू ले
ये ज़ख़्मे-तलब<ref>माँग के घाव</ref>, ये नामुरादी<ref>दुर्भाग्य</ref>
हर बुत के लबों<ref>होंठों</ref> पे है तबस्सुम<ref>मुस्कान</ref>
ऐ तेशा-ब-दस्त<ref>हाथ में कुदाली लिए हुए</ref> देवताओ!
तख़्लीक़<ref>सृजन</ref> अज़ीम<ref>महान</ref> है कि ख़ालिक़<ref>सृजक</ref>
इन्सान जवाब चाहता है