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वे सोच रहे हैं | वे सोच रहे हैं |
22:55, 29 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
औरत (चार)
तुम सोचो मत
वे सोच रहे हैं
सृष्टि के पहले दिन से
अनवरत
तुम मत देखो
देखने से चीज़े साफ़ हो जाती हैं
इतनी कि सब भरम मिट जाते हैं
और भरम मिट जाने पर
किसी को भरमाया नहीं जा सकता
तुम केवल सुनो
सुने हुए के
शब्द- शब्द को
समेटते हुए मुठ्ठियों में
इस तरह
कि मुठ्ठियाँ खुलें भी
तो झरें नहीं शब्द
खुले नहीं रहस्य
उन आशाओं का
जिनके अंतर्गत
तुम गृहिणी सलज्ज सलोनी
और गणिका ठीट चितवन वाली
दोनों एक साथ.