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02:33, 18 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
खूब-खूब हुआ काव्य-पाठ
खूब-खूब सराहा गया एक दूसरे को जमकर
खूब-खूब जगा और जगाया गया आत्मबोध
श्रोता चुपचाप रहे की शायद कहीं हों उनके भी शब्द
उनका भी कोई बिम्ब हो कहीं
कहीं कोई जानी- पहचानी लय उनकी हो अपनी
या फिर कोई बात
घर-घाट, बाजार-हाट, लूट-पाट भी
कुछ भी नहीं था कहीं केवल काव्य-पाठ
काव्य-पाठ केवल था कवियों की भाषा में
कवियों की बातचीत की तरह
यहाँ तक की समय भी अनुपस्थित था
वहाँ
उनके बीच
शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।