भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"संस्कृति का संवाहक / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>पीपल का पेड़ पेड़ होते हुए देवता है…) |
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
पेड़ होते हुए देवता है | पेड़ होते हुए देवता है | ||
लोग इसे पूजते हैं | लोग इसे पूजते हैं | ||
− | कहते हैं | + | कहते हैं, इस गाँव में |
सभी देव वास करते हैं। | सभी देव वास करते हैं। | ||
11:15, 6 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
पीपल का पेड़
पेड़ होते हुए देवता है
लोग इसे पूजते हैं
कहते हैं, इस गाँव में
सभी देव वास करते हैं।
पत्थर की चिकनी और गोल शिलाएँ
इस के मूल में श्रद्धा से रखते हैं
फूल फल चढाते हैं
फिर प्रसाद आए हुए लोगों में बाँटते हैं।
पीपल का पेड़ और पेडों के समान
काटा नहीं जाता
जिस से सबका हित हो
ऎसा कोई काम कभी आ पड़े
तभी लोग इस पर कुठार भी चलाते थे।
इस पेड़ को भारत के अस्तित्व और
संस्कृति का संवाहक कहते थे भारतीय।
गौतम का बोधिवृक्ष
यही है।