भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आत्मीयता का मूल्य / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}} मेरे घर के चारो ओर हरियाली …)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
         
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= रमा द्विवेदी
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
मेरे घर के चारो ओर हरियाली ही हरियाली है,
 +
रंग-बिरंगे फूलों की सजी-धजी क्यारी है।
 +
लोगों से कई गुना अधिक यहाँ  फूल बेशुमार हैं,
 +
पर जहाँ देखो वहां गाडियों की कतार है॥ 
  
{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}
+
घर में है बगीचा या बगीचे में है घर,
 +
होता है मुझे भ्रम यह अक्सर।
 +
पर मेरे मन में है पतझड,
 +
यहाँ आदमी कम ही होता है दृष्टिगोचर॥ 
  
 +
कितना दुख है अकेलेपन का यहाँ ?
 +
कितना इन्तज़ार है किसी के होने का यहाँ ?
 +
मेरा मन तड़पता है किसी से मिलने को यहाँ,
 +
लड़ने-झगड़ने व रोने-हँसने को यहाँ॥ 
  
मेरे घर के चारो ओर हरियाली ही हरियाली है,<br>
+
फूलों की ओर एकटक देखती हूं मैं,  
रंग-बिरंगे फूलों की सजी-धजी क्यारी है।<br>
+
कितने खुश हैं ये अकेले रह कर यहाँ ?  
लोगों से कई गुना अधिक यहाँ  फूल बेशुमार हैं,<br>
+
मेरे मन में क्यों इतना गहरा अंधकार है?  
पर जहाँ देखो वहां गाडियों की कतार है॥<br><br>
+
क्यों मुझे किसी से मिलने का इन्तजार है?   
घर में है बगीचा या बगीचे में है घर,<br>
+
होता है मुझे भ्रम यह अक्सर।<br>
+
पर मेरे मन में है पतझड,<br>
+
यहाँ आदमी कम ही होता है दृष्टिगोचर॥<br><br>
+
कितना दुख है अकेलेपन का यहाँ ?<br>
+
कितना इन्तज़ार है किसी के होने का यहाँ ?<br>
+
मेरा मन तड़पता है किसी से मिलने को यहाँ,<br>
+
लड़ने-झगड़ने व रोने-हँसने को यहाँ॥<br><br>
+
फूलों की ओर एकटक देखती हूं मैं,<br>
+
कितने खुश हैं ये अकेले रह कर यहाँ ?<br>
+
मेरे मन में क्यों इतना गहरा अंधकार है?<br>
+
क्यों मुझे किसी से मिलने का इन्तजार है?<br><br>
+
अकेलापन मानव को दीमक की तरह खा जाता है,<br>
+
आत्मीयता में मानव अदृश्य- शक्ति पाता है।<br>
+
काश! मुझे भी यहाँ अपनेपन का अहसास होता,<br>
+
मेरे मन का सुकून यहाँ यूँ तो न खोता॥<br><br>
+
     
+
  
      (अमेरिका प्रवास के समय लिखी गई कविता)
+
अकेलापन मानव को दीमक की तरह खा जाता है,
 +
आत्मीयता में मानव अदृश्य- शक्ति पाता है।
 +
काश! मुझे भी यहाँ  अपनेपन का अहसास होता,
 +
मेरे मन का सुकून यहाँ यूँ तो न खोता॥ 
 +
 
 +
(अमेरिका प्रवास के समय लिखी गई कविता)
 +
</poem>

22:39, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

मेरे घर के चारो ओर हरियाली ही हरियाली है,
रंग-बिरंगे फूलों की सजी-धजी क्यारी है।
लोगों से कई गुना अधिक यहाँ फूल बेशुमार हैं,
पर जहाँ देखो वहां गाडियों की कतार है॥

घर में है बगीचा या बगीचे में है घर,
होता है मुझे भ्रम यह अक्सर।
पर मेरे मन में है पतझड,
यहाँ आदमी कम ही होता है दृष्टिगोचर॥

कितना दुख है अकेलेपन का यहाँ ?
कितना इन्तज़ार है किसी के होने का यहाँ ?
मेरा मन तड़पता है किसी से मिलने को यहाँ,
लड़ने-झगड़ने व रोने-हँसने को यहाँ॥

फूलों की ओर एकटक देखती हूं मैं,
कितने खुश हैं ये अकेले रह कर यहाँ ?
मेरे मन में क्यों इतना गहरा अंधकार है?
क्यों मुझे किसी से मिलने का इन्तजार है?

अकेलापन मानव को दीमक की तरह खा जाता है,
आत्मीयता में मानव अदृश्य- शक्ति पाता है।
काश! मुझे भी यहाँ अपनेपन का अहसास होता,
मेरे मन का सुकून यहाँ यूँ तो न खोता॥

(अमेरिका प्रवास के समय लिखी गई कविता)