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| एक दिन मैंने | एक दिन मैंने | ||
| − | + | मौन में शब्द को धँसाया था | |
| और एक गहरी पीड़ा, | और एक गहरी पीड़ा, | ||
| एक गहरे आनंद में, | एक गहरे आनंद में, | ||
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| विवश कुछ बोला था; | विवश कुछ बोला था; | ||
| सुना, मेरा वह बोलना | सुना, मेरा वह बोलना | ||
| − | + | दुनिया में काव्य कहलाया था। | |
| आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ, | आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ, | ||
| अब न पीड़ा है न आनंद है | अब न पीड़ा है न आनंद है | ||
| विस्मरण के सिन्धु में | विस्मरण के सिन्धु में | ||
| − | डूबता सा जाता हूँ, | + | डूबता-सा जाता हूँ, | 
| देखूँ, | देखूँ, | ||
| तह तक | तह तक | ||
12:38, 27 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण
एक दिन मैंने
मौन में शब्द को धँसाया था
और एक गहरी पीड़ा,
एक गहरे आनंद में,
सन्निपात-ग्रस्त सा,
विवश कुछ बोला था;
सुना, मेरा वह बोलना
दुनिया में काव्य कहलाया था।
आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ,
अब न पीड़ा है न आनंद है
विस्मरण के सिन्धु में
डूबता-सा जाता हूँ,
देखूँ,
तह तक
पहुँचने तक,
यदि पहुँचता भी हूँ, 
क्या पाता हूँ।