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10:43, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
आलम ऐन
रचनाकार | कृश्न कुमार 'तूर' |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | 2005 |
भाषा | उर्दू |
विषय | ग़ज़ल संग्रह(शेरी मज्मूआ) |
विधा | |
पृष्ठ | 112 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
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- दिल ज़ेरे गुमाँ रहे तो बेहतर / कृश्न कुमार तूर
- मैं वहम हूँ या हक़ीक़त ये हाल देखने को / कृश्न कुमार तूर
- ख़ुद से मिलने के ही कुछ असबाब न थे / कृश्न कुमार तूर
- पानी मकाँ अगले क़दमों में / कृश्न कुमार तूर
- घिरा था अक्स से अपने ही आने वाला भी / कृश्न कुमार तूर
- मैं मंज़र हूँ पस मंज़र से मेरा रिश्ता बहुत / कृश्न कुमार 'तूर'
- अपनी अपनी अना के दोनों दम आशार / कृश्न कुमार 'तूर'
- ज़ीस्त की सारी आन-बान फ़ना आमादा / कृश्न कुमार 'तूर'
- मैं इक ख़ाली कश्ती दरिया और है अब / कृश्न कुमार 'तूर'
- बे-मंज़र इस दुनिया को इक मंज़र दे / कृश्न कुमार 'तूर'
- साहिल से बीच समंदर गहरा पानी / कृश्न कुमार 'तूर'
- मैं तो इक पत्थर हूँ अपने आँगन में / कृश्न कुमार 'तूर'
- इक आईना ख़ुद के बराबर क्या कम है / कृश्न कुमार 'तूर'
- आख़िर है पुतलियों का तमाशा ज़रा-सी देर / कृश्न कुमार 'तूर'
- सामने अपने आपको ज़िन्दा कम देखा / कृश्न कुमार 'तूर'
- इसी नुक़्ते पे दिल को लाना है / कृश्न कुमार 'तूर'
- जो भी चीज़ यहाँ है आनी जानी है / कृश्न कुमार 'तूर'
- काँटों को गुलाब दे रहा हूँ / कृश्न कुमार 'तूर'
- दुनिया में नैरंगे-दुनिया कम देखा / कृश्न कुमार 'तूर'
- अपने होंठों पर इक दिया रौशन कर / कृश्न कुमार 'तूर'
- / कृश्न कुमार 'तूर'
- / कृश्न कुमार 'तूर'
- / कृश्न कुमार 'तूर'
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