भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्यार भी करते हो / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (प्यार भी करते हो / डा.रमा द्विवेदी का नाम बदलकर प्यार भी करते हो / रमा द्विवेदी कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=रमा द्विवेदी | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | प्यार भी करते हो तुम तलवार की धार पर, | ||
+ | जान भी ले लेते हो, प्यार के इंकार पर। | ||
+ | बर्बरता का यह कौन सा सोपान है? | ||
+ | खून की वेदी रचाते हो हमें तुम मारकर॥ | ||
− | + | भावनाएँ घायल हुईं जब , | |
− | + | फिर जिस्म में था क्या बचा? | |
− | + | जिस्म के टुकड़े किए फिर भी, | |
− | + | हैवानियत का यह कैसा नशा? | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | भावनाएँ घायल हुईं जब , | + | |
− | फिर जिस्म में था क्या बचा? | + | |
− | जिस्म के टुकड़े किए फिर भी, | + | |
− | हैवानियत का यह कैसा नशा?< | + |
23:22, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
प्यार भी करते हो तुम तलवार की धार पर,
जान भी ले लेते हो, प्यार के इंकार पर।
बर्बरता का यह कौन सा सोपान है?
खून की वेदी रचाते हो हमें तुम मारकर॥
भावनाएँ घायल हुईं जब ,
फिर जिस्म में था क्या बचा?
जिस्म के टुकड़े किए फिर भी,
हैवानियत का यह कैसा नशा?