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बैलों के थूथन से खूनी फेचकुर लटक रहा है
हर आदमी ख़ून का पेशाब कर रहा है
गारद जंगली गठानों जैसी खड़ी है गंधाती
और ऊपर घिनौनी मौत मंडराती।
रचनाकाल : 24 अक्तूबर 1944
अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे