भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वेदना / अंतराल / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
{{KKCatGeet}}
 
 
<poem>
 
<poem>
 
:घाव पुराने पीड़ा के
 
:घाव पुराने पीड़ा के

15:36, 29 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

घाव पुराने पीड़ा के
जाने-अनजाने में सबके
आज हरे गीले सूजे !
रह-रहकर बह जाती असह्य लहर,
मानो बिजली का तीव्र करेंट ठहर
मांस मौन तड़पा देता !
नाली के कीड़ों जैसा इधर-उधर
जग के सारे ओर-छोर घेरे,
हृदय विदारक
नाशक
मूक अभावों की
धूल भरी अंधी
आँधी बहती जाती !
मर्माहत यौवन चीख रहा
रोक भुजाओं से असफल !
आज निराशा के बादल
छाये नभ में उमड़-घुमड़ ;
जीवन में,
जन-जन-मन में हलचल !

आज युगों के घाव हरे !
हर उर में
दुख-दर्द भरे !

रचनाकाल: 1949