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"विश्वास / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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− | जाने क्या-क्या कह जाओगी ! | + | लज्जा के रँग भर-भर लाओगी! |
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− | ज्यों चंदा को देख | + | ज्यों चंदा को देख |
− | चकोर विहँसने लगता है, | + | चकोर विहँसने लगता है, |
− | ज्यों ऊषा के आने पर | + | ज्यों ऊषा के आने पर |
− | कमलों का दल खिलने लगता है, | + | कमलों का दल खिलने लगता है, |
− | वैसे ही देख तुम्हें कोई | + | वैसे ही देख तुम्हें कोई |
− | चंचल हो जाएगा ! | + | चंचल हो जाएगा! |
− | बीते मीठे सपनों की | + | बीते मीठे सपनों की |
− | दुनिया में खो जाएगा ! | + | दुनिया में खो जाएगा! |
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− | फिर इंगित से पास बुलाएगा, | + | फिर इंगित से पास बुलाएगा, |
− | धीरे से पूछेगा — | + | धीरे से पूछेगा — |
− | ‘कैसी हो, | + | ‘कैसी हो, |
− | कब आयीं ? | + | कब आयीं? |
− | तुम क्या उत्तर दोगी ? | + | तुम क्या उत्तर दोगी? |
− | शायद, दो लम्बी आहें भर लोगी | + | शायद, दो लम्बी आहें भर लोगी |
− | आँखों पर आँचल धर लोगी !< | + | आँखों पर आँचल धर लोगी! |
+ | </poem> |
23:31, 30 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
यह विश्वास मुझे है —
एक दिवस तुम
मेरी प्यासी आँखों के सम्मुख
मधु-घट लेकर आओगी!
बदली बनकर छाओगी!
दरवाज़े को
गोरे-गोरे दर्पन-से हाथों से
खोल खड़ी हो जाओगी!
भोले लाल कपोलों पर
लज्जा के रँग भर-भर लाओगी!
नयनों की अनबोली भाषा में
जाने क्या-क्या कह जाओगी!
ज्यों चंदा को देख
चकोर विहँसने लगता है,
ज्यों ऊषा के आने पर
कमलों का दल खिलने लगता है,
वैसे ही देख तुम्हें कोई
चंचल हो जाएगा!
बीते मीठे सपनों की
दुनिया में खो जाएगा!
फिर इंगित से पास बुलाएगा,
धीरे से पूछेगा —
‘कैसी हो,
कब आयीं?
तुम क्या उत्तर दोगी?
शायद, दो लम्बी आहें भर लोगी
आँखों पर आँचल धर लोगी!