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"निष्कर्ष / राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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− | (जितना भी) | + | ऊहापोह |
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− | हो परिपक्व जितने भी समय में। | + | विचार-विमर्श |
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− | प्रत्येक वांछित कोण से। | + | मीमांसा-समीक्षा / तर्क / विशद विवेचना |
− | क्योंकि जीवन में | + | प्रत्येक वांछित कोण से। |
− | हुआ जो भी घटित - | + | क्योंकि जीवन में |
− | वह स्थिर सदा को, | + | हुआ जो भी घटित - |
− | एक भी अवसर नहीं उपलब्ध | + | वह स्थिर सदा को, |
− | भूल-सुधार को। | + | एक भी अवसर नहीं उपलब्ध |
− | सम्भव नहीं | + | भूल-सुधार को। |
− | किंचित बदलना | + | सम्भव नहीं |
− | कृत-क्रिया को। | + | किंचित बदलना |
− | सत्य _ | + | कृत-क्रिया को। |
− | कर्ता और निर्णायक | + | सत्य _ |
− | तुम्हीं हो, | + | कर्ता और निर्णायक |
− | पर नियामक तुम नहीं। | + | तुम्हीं हो, |
− | निर्लिप्त हो | + | पर नियामक तुम नहीं। |
− | परिणाम या फल से। | + | निर्लिप्त हो |
− | (विवशता) | + | परिणाम या फल से। |
− | सिध्द है _ | + | (विवशता) |
− | जीवन : परीक्षा है कठिन | + | सिध्द है _ |
− | पल-पल परीक्षा है कठिन। | + | जीवन : परीक्षा है कठिन |
− | वीक्षा करो | + | पल-पल परीक्षा है कठिन। |
− | हर साँस गिन-गिन, | + | वीक्षा करो |
− | जो समक्ष | + | हर साँस गिन-गिन, |
− | उसे करो स्वीकार | + | जो समक्ष |
+ | उसे करो स्वीकार | ||
अंगीकार! | अंगीकार! | ||
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15:23, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
ऊहापोह
(जितना भी)
ज़रूरी है।
विचार-विमर्श
हो परिपक्व जितने भी समय में।
तत्त्व-निर्णय के लिए
अनिवार्य
मीमांसा-समीक्षा / तर्क / विशद विवेचना
प्रत्येक वांछित कोण से।
क्योंकि जीवन में
हुआ जो भी घटित -
वह स्थिर सदा को,
एक भी अवसर नहीं उपलब्ध
भूल-सुधार को।
सम्भव नहीं
किंचित बदलना
कृत-क्रिया को।
सत्य _
कर्ता और निर्णायक
तुम्हीं हो,
पर नियामक तुम नहीं।
निर्लिप्त हो
परिणाम या फल से।
(विवशता)
सिध्द है _
जीवन : परीक्षा है कठिन
पल-पल परीक्षा है कठिन।
वीक्षा करो
हर साँस गिन-गिन,
जो समक्ष
उसे करो स्वीकार
अंगीकार!