भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भाषा की मृत्यु / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह = एक समय था / रघुवीर सहाय | |संग्रह = एक समय था / रघुवीर सहाय | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKAnthologyDeath}} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 25: | ||
कवि मांगता है बचे रहने का वरदान । | कवि मांगता है बचे रहने का वरदान । | ||
− | + | '''1 जुलाई 1972 को रचित''' | |
</poem> | </poem> |
01:42, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
भाषा बेकार है
यही कहने के लिए यदि बची है भाषा
तो वह बेकार है
जो मर गया है उसे न पहचानने के कारण
मर गी है वह
मृत्यु दो मनुष्यों को जोड़ती है
एक-दूसरे के बराबर रखकर
अगर मृत्यु के आंकड़े
आड़ हैं
जिनमें निहित है
बहुत मरे- मैं उनमें नहीं था
मैं नहीं मरा
सब शोक प्रस्ताव हैं अपने बचे रहने की घोषणाएं
कविता यही करती है घोषणा
मरे हुए शब्दों में जब शोक प्रस्ताव करती है
भाषा को शक्ति दो यह प्रार्थना करके
कवि मांगता है बचे रहने का वरदान ।
1 जुलाई 1972 को रचित